बुधवार, 29 अप्रैल 2009

प्यार करती हो , तड़पाती भी हो


सामने आकर यु तडपती हो मुझे ,
मेरे साथ रहकर भी सताती हो मुझे,
कहती हो हर बार, सिर्फ़ तुम मेरे हो,
फिर पहना कर हार जुदाई का, तो क्यों बहलाती हो मुझे,
तुम हर वक्त युही तडपाती हो मुझे.........

तुम क्यू हर वक्त युही तडपाती हो मुझे.............

कहती हो कभी तुम मेरे लिए कुछ नही,
तो कहती हो कभी तुम ही मेरे सब कुछ हो,
रखती हो दूर हर वक्त मुझे अपने आप से,
और कहती हो तुम्ही मुझसे कुछ जुदा से हो,
ऐसा ही कहकर सदा रुला जाती हो मुझे,

तुम क्यू हर वक्त युही तडपाती हो मुझे.........
तुम हर वक्त युही तडपाती हो मुझे.............


जानती हो मेरे हालात फ़िर भी रहती हो कुछ अनजान सी,
समझती हो सब बात फिर भी रहती हो नादान सी,
कहती तो हो हर बार ज्ञान की गूढ़ बातें ,
पर मेरे प्यार की बातें आते ही हो जाती हो कुछ अज्ञान सी,
ऐसी ही बातों से तुम हर दम रिझाती हो मुझे,
बस युही हर वक्त तडपाती हो मुझे......
बस युही हरवक्त तडपाती हो मुझे........

देखती हो मुझे पर अनदेखा ही करती हो,
सुनती हो बातें मेरी पर अनसुना ही करती हो,
आपकी ये अदा भी हम सर आंखों पे रखते है
इसलिए तो तड़प कर भी आप ही से प्यार करते है,
ऐसे ही दिन रात मोहब्बत सिखा जाती हो मुझे,
क्युकी मै जनता हु ........ऐसे ही तड़पाकर प्यार करती हो मुझे......
ऐसे ही तड़पाकर प्यार करती हो मुझे..........

ये कविता मैंने बड़े दिनों बाद लिखी है जो शायद मैंने पुरे दिल से लिखी है
लोकेश पिडावेकर

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

देखा प्यार को

जिंदगी

जिंदगी एक अनसुलझी पहेली है,
या हर सवाल का जवाब जिंदगी है...
है हकीकत ये,
या हर हकीकत से बढ़कर एक ख्वाब जिंदगी है...

है ये कठिन एक सफर,
या ख्वाहिशो की उड़ान जिंदगी है...
गुमनामी का दूसरा नाम है ये,
या अपनी एक अलग पहचान जिंदगी है...

है साजिशों से भरी,
या मासूमियत जिंदगी है...
एक सी चलती है, या फिर
पल पल बदलती फितरत जिंदगी है...

दूर से रिझाती है,
या रूह के पास जिंदगी है...
है नफरतों में घुट्टी हुई,
या प्यार का कोमल एहसास जिंदगी है...

जिंदा रहने की खातिर है जिंदगी,
या जीने का नाम जिंदगी है...
तरसाती हुई साकी बाला है, या फिर
सदियों की तृष्णा बुझाता जाम जिंदगी है...

महज़ साँसों का चलना है,
या धडकनों की रफ़्तार जिंदगी है...
वक्त के संग बहती है, या
वक्त के थपेडों का सामना कर के भी बरकरार जिंदगी है...

है अधमरी कोई आस,
या अटूट विश्वास जिंदगी है...
है अच्छी, या है बुरी,
या अच्छे-बुरे का सारांश जिंदगी है...

है सुनसान, वीरान सी,
या आबाद जिंदगी है...
इश्वर-अल्लाह-इसा मसीह की खोज है ये,
या उन्ही की एक मुराद है जिंदगी...

इस दुनिया के कण कण में है,
या मुझमें छुपी जिंदगी है...
क्या खामोश रह कर भी, इशारों में,
कुछ कहती रही जिंदगी है...

है चुप-चाप, सहमी हुई सी,
या खिलखिलाकर मुस्कुराती जिंदगी है...
है हमेशा से स्थायी ये,
या जिंदगी से आती-जाती जिंदगी है...

है खामोश ये,
या कोई आवाज़ जिंदगी है...
है यूँही चलते रहना,
या जिंदगी जीने का अंदाज़ जिंदगी है...

डूबी है अपने-आप में, या
औरों के लिए बेकार जिंदगी है...

आपके लिए जाने क्या है,
मेरे लिए बस प्यार जिंदगी है...


मैंने यही पाया की ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही है ये खुबसूरत है मेरे लिए अद्भुत है मै भी इस कविता के रंग मै रंग गया हूँ आप भी इसमे सराबोर हो जाइये

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

हो जाओ तैयार !!!!

हम रहे है!!!!!!!!!

दुनियावालो थाम लो अपनी धड़कने
रोक
लो अपनी
साँसे
क्योकि
एक बार फिर इस दुनिया पर राज करने
हम रहे है.......
हम
रहे है.......
नदियों
का रुख मोड़ने , तुफानो को रोकने
पर्वतो
को फोड़ने, समंदर की लहरों को जोड़ने
हर
परम्परा को तोड़ने ,हर किसी को पीछे छोड़ने
हार
को हार से हराने , जीत को
जीत से जीतने
हम
रहे है
क्योकि
एक बार फिर इस दुनिया पर राज करने
हम रहे है.......
हम
रहे है.......
रुक ज़रा दुश्मन ऐसे ही कह चला रहा है
अंदाजा
नही तुझे हमारी ताकत का , जो ख़ुद पे यु इतर रहा है
हार बार ज़ंग मै जीतना हमारी तो आदत बन गयी है
पर
तू क्यो हार बार हारने की आदत बना रहा है
चेतावनी
हम देते नही सिर्फ़ वार किया करते है
एक
बार फिर समझा रहे है रोकले अपने आप को
रुकजा

क्योकि
हम रहे है........
क्योकि
हम रहे है........

इतिहास
गवाह है , ये चाँद तारे गवाह है
जब
भी हुआ है हमारा सामना आग के दरिया से
शोला बनकर उसमे से गुजरे है
हुआ
जब सामना हमारा आकाश से
कहर
बनके उसपे यु बरसे है
के ज़मीन हमसे थार थार यु कांपती
क्योकि
वो भी हमारी ताकत को है जानती
समंदर
के अन्दर गहरे की थाह लेने पहुचेंगे हम
ये हम नही दुनिया हमें है मानती
अब
नई बिसात के सिपाही भी इंतज़ार हमारा कर रहे है
क्योकि
दुनिया पर राज करने हम रहे है
हम
रहे है...........
हम रहे है..........

मेरी लिखी एक बेहद ही ख़ास कविता जिससे मै भी हमेशा आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा लेता हूँ
------ लोकेश पिडावेकर ------

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

हर पल तेरी याद के साथ

हर पल तेरी याद के साथ

जिंदगी में मिले चाहे जीत
चाहे मिल जाए मुझे हार
पर गुजारिश है उस खुदा से
हर वक्त मिलता रहे मुझे तेरा प्यार
चाहे हो हीरे मोती चाहे हो मेरे खली हाथ
दुआ बस यही है उस खुदा से
जिंदगी गुजरे हर पल तेरी याद के साथ..........
हर पल तेरी याद के साथ...........

हालत बस में मेरे होंगे कल
इसका मुझे पता नही
मिल पायेगी कामयाबी कल
इसका मुझे पता नही
क्या हो पाएँगी पुरी हसरते मेरी कल
इसका मुझे पता नही
हा अगर चाहे जीवन में मेरे मुश्किलें हो लाख
पर फिर भी युही कट जाए मेरा वक्त हर पल तेरी याद के साथ..........
हर पल तेरी याद के साथ...........

हर राह में मिलेंगे मुझे कांटे और फूल
कोशिश बस यही रहेगी की हो मुझसे कोई भूल
हो मेरे आस-पास चाहे हजारो गुल
भूल कर भी छु पे मुझे कोई शूल
हो जायेंगे हजारो के अरमान जो ख़ाक
पर वो हालत भी गुजरेंगे मेरे हर पल तेरी याद के साथ..........
हर पल तेरी याद के साथ...........

जितना ही सब कुछ नही होता
बहुत ज़रूरी होता है हारना
पाना ही सब कुछ नही होता
बहुत जरुरी होता है खोकर भूल पाना
चाहे हो जाए मेरे दिल में लाखो सुराख
फिर भी कट जायेगी मेरी ज़िन्दगी, हर पल तेरी याद के साथ..........
हर पल तेरी याद के साथ...........

इकरार मुश्किल होता नही
पर इकरार सबकी तकदीर में होता नही
इनकार से ही सबको डर लगता है ऐसा नही
पर हर वक्त हो इंतज़ार ऐसा ज़रूरी नही
तसव्वुर में दीदार हो उनका ये बात मामूली नही
पर हर वक्त उन्हें देखना ये हमारे लिए मुमकिन नही
लाख भूलने की कोशिश करले ये ज़माना फिर भी
सुनायेंगे हम रोकर अपनी ही प्रीत की गाथ
क्योकि मेरी ज़िन्दगी तो उजर रही है
हर पल तेरी याद के साथ..........
हर पल तेरी याद के साथ...........

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

मेरी पहली कविता


मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!!!!!

चकाचौंध भर गयी ज़िन्दगी में
प्रसिद्धि भी मिल रही थी उसे
नाम और दाम तो कमाया साथ-साथ
मन की संतुष्टि भी मिल रही थी उसे
मेरे भी यही अरमान थे शायद
पर क्या पता था की मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!

बड़े जतन से किया था यत्न
संकल्प था दृढ़ , निश्चय था अडिग
कठिन परिश्रम की पूंजी से '
आत्मा को गहरी शांति भी मिलती थी
हर दम हर पल जितने की और बढ़ता था शायद
पर क्या पता था मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!

साथ दे रहा था मन
साथ में मेरी थी उमंग
लहर बनके दौड़ती थी रक्त में उर्जा मलंग
असफलता भी दिखा जाती थी सफलता के कई रंग
उत्साहवर्धन हो जाता था तब खिल जाता था अंग - अंग
इस उजले सपने के बीच जीने की मुझे आदत हो गयी थी
पर क्या पता था मुझे मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!

वक़्त की सुइया युही चलती रही
समय की गिनती युही बढती रही
हर लम्हा अब पुकार रहा था मुझे
वापस आने का कह रहा था मुझे
उस क्षण लगा लक्ष्य चुनने में मुझसे कोई भूल हो गयी थी
पर मंजिल तो थी सही राह में ही कही चूक हो गयी थी
उस पल कदम पीछे ले लिया मैंने
पर क्या पता था मुझे मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!



आज लगता है शायद कमी रहे गयी थी धैर्य में
मंजिल तो थी मेरे करीब पर समझ हुई थोडी देर में
उम्र के इस पड़ाव पर बैठा हु मई सोच रहा
क्या खोया क्या पाया मैंने, इस लम्बी चौडी भागदौड़ में
एक अजीब सी कसक रहती है में में
एक अजब सी तीस चुभती है मन में
संघर्ष को विराम क्यों दिया मैंने
क्या पता, मंजिल पा लेती मुझे कुछ समय में
पर उस हार को ही निर्णय मानकर बैठा हु मई अपने घर में
चाहता हु नै खोज पर जान एक नए आत्मविश्वास और एक नए धैर्य में