गुरुवार, 4 जून 2009

dur ho gaye

जब से दूर गयी हो मुझसे

दिन तो होते है पर मै शायद उठता नही
शब् तो खिलती है पर मै शायद सोता नही
क्या कहू क्या सितमगर ये ज़िन्दगी हुई
जो जहा की भीड़ मै एक तू ही मिलता नही
क्या कहू कैसे हुआ ज़िन्दगी रूठ गयी मुझसे
जब से दूर हो गयी हो तुम मुझसे
जब से दूर हो गयी हो तुम मुझसे

सूरज भी आग बनकर इस दिल पे बरस रहा है
चाँद जो अपनी मुलाकातों का गवाह था , आज वो भी मेरे हालत पे हस रहा है
हवा के झोंके जो तेरी हसी की याद दिलाते थे
आज वो भी तूफान बनके दिल पे गरज के जाते है
क्या कहू क्या हुआ जुदा जुदा सा रहने लगा हु ख़ुद से
जब से दूर गयी हो तुम मुझसे
जब से दूर गयी ही तुम मुझसे

खुशिया दस्तक देती रहती है
पर लगता है दरवाज़ा बंद ही रखु
जो तू नही है मेरे साथ में
तो तेरे गमो को ही नज़र में सजा के रखु
ऐसी क्या बात हुई जो तू मेरे ज़ज्बात समझ न पाई
प्यार तो किया था मैंने बहुत पर क्यों मेरी किस्मत में आयी रुसवाई
आँखों में तेरा दर्द छुपता हु आजकल में सबसे
ऐसा ही बन गया हु जब से रूठ गयी है तू मुझसे
जब से दूर गयी है तू मुझसे

आज बस ये तय कर लिया है
मांग लूँगा खुदा से सिर्फ़ तेरा साथ
क्युकी तनहा ये सफर करना
अब नही रह गयी मेरे बस की बात
अश्को के दामन में रात गुजर जाती है
और मेरे रह जाते है खली हाथ
थक गया हु सहते सहते अब नही होती मुझसे ये जुदाई बर्दाश्त
बहुत हो गया ये रूठना
बहुत हो गयी ये सारी बात
ख्वाहिश है मेरी बस यही
अब आजा तू मेरे पास
अब आजा तू मेरे पास ........


-लोकेश पिडावेकर
बहुत दिनों बाद आपके साथ रूबरू होने का मौका मिल रहा है । इसका आनंद उठाइए ।