
मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!!!!!
चकाचौंध भर गयी ज़िन्दगी में
प्रसिद्धि भी मिल रही थी उसे
नाम और दाम तो कमाया साथ-साथ
मन की संतुष्टि भी मिल रही थी उसे
मेरे भी यही अरमान थे शायद
पर क्या पता था की मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
बड़े जतन से किया था यत्न
संकल्प था दृढ़ , निश्चय था अडिग
कठिन परिश्रम की पूंजी से '
आत्मा को गहरी शांति भी मिलती थी
हर दम हर पल जितने की और बढ़ता था शायद
पर क्या पता था मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
साथ दे रहा था मन
साथ में मेरी थी उमंग
लहर बनके दौड़ती थी रक्त में उर्जा मलंग
असफलता भी दिखा जाती थी सफलता के कई रंग
उत्साहवर्धन हो जाता था तब खिल जाता था अंग - अंग
इस उजले सपने के बीच जीने की मुझे आदत हो गयी थी
पर क्या पता था मुझे मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
वक़्त की सुइया युही चलती रही
समय की गिनती युही बढती रही
हर लम्हा अब पुकार रहा था मुझे
वापस आने का कह रहा था मुझे
उस क्षण लगा लक्ष्य चुनने में मुझसे कोई भूल हो गयी थी
पर मंजिल तो थी सही राह में ही कही चूक हो गयी थी
उस पल कदम पीछे ले लिया मैंने
पर क्या पता था मुझे मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
आज लगता है शायद कमी रहे गयी थी धैर्य में
मंजिल तो थी मेरे करीब पर समझ हुई थोडी देर में
उम्र के इस पड़ाव पर बैठा हु मई सोच रहा
क्या खोया क्या पाया मैंने, इस लम्बी चौडी भागदौड़ में
एक अजीब सी कसक रहती है में में
एक अजब सी तीस चुभती है मन में
संघर्ष को विराम क्यों दिया मैंने
क्या पता, मंजिल पा लेती मुझे कुछ समय में
पर उस हार को ही निर्णय मानकर बैठा हु मई अपने घर में
चाहता हु नै खोज पर जान एक नए आत्मविश्वास और एक नए धैर्य में
प्रसिद्धि भी मिल रही थी उसे
नाम और दाम तो कमाया साथ-साथ
मन की संतुष्टि भी मिल रही थी उसे
मेरे भी यही अरमान थे शायद
पर क्या पता था की मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
बड़े जतन से किया था यत्न
संकल्प था दृढ़ , निश्चय था अडिग
कठिन परिश्रम की पूंजी से '
आत्मा को गहरी शांति भी मिलती थी
हर दम हर पल जितने की और बढ़ता था शायद
पर क्या पता था मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
साथ दे रहा था मन
साथ में मेरी थी उमंग
लहर बनके दौड़ती थी रक्त में उर्जा मलंग
असफलता भी दिखा जाती थी सफलता के कई रंग
उत्साहवर्धन हो जाता था तब खिल जाता था अंग - अंग
इस उजले सपने के बीच जीने की मुझे आदत हो गयी थी
पर क्या पता था मुझे मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
वक़्त की सुइया युही चलती रही
समय की गिनती युही बढती रही
हर लम्हा अब पुकार रहा था मुझे
वापस आने का कह रहा था मुझे
उस क्षण लगा लक्ष्य चुनने में मुझसे कोई भूल हो गयी थी
पर मंजिल तो थी सही राह में ही कही चूक हो गयी थी
उस पल कदम पीछे ले लिया मैंने
पर क्या पता था मुझे मंजिल बस दो कदम ही दूर थी
.......................... मंज़िल बस दो कदम ही दूर थी!!
आज लगता है शायद कमी रहे गयी थी धैर्य में
मंजिल तो थी मेरे करीब पर समझ हुई थोडी देर में
उम्र के इस पड़ाव पर बैठा हु मई सोच रहा
क्या खोया क्या पाया मैंने, इस लम्बी चौडी भागदौड़ में
एक अजीब सी कसक रहती है में में
एक अजब सी तीस चुभती है मन में
संघर्ष को विराम क्यों दिया मैंने
क्या पता, मंजिल पा लेती मुझे कुछ समय में
पर उस हार को ही निर्णय मानकर बैठा हु मई अपने घर में
चाहता हु नै खोज पर जान एक नए आत्मविश्वास और एक नए धैर्य में
6 टिप्पणियां:
bahut badhia yaar
kafi acchi likhi hai
thodi si jyada lambi ho gayi but
still very nice
keep it up
lovely...................
i too agree with chirag its a bit long....
sooo the effect is not created that way...
but gud....love it
aapki comments ko dhyan rakha jayega
nice one bhai.......gota good message,
really liked it.
thnx ashwin
i would like to snatch your thoughts...
bhagvan ne tum logo ko upar se kuch alag tarah ka human bna k bheja he....
partiality ki..........
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